उत्तर प्रदेश (यूपी) में पेराई सत्र 2023-2024 के लिए गन्ना अटकलों और आपूर्ति पर नई नीति जारी की गई है। गन्ना और चीनी आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी ने इस नीति का बयान जारी किया। इस नीति में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जो विशेष रूप से छोटे किसानों को लाभान्वित करेंगे।
गन्ना आपूर्ति नीति के मुख्य बिंदु
नई गन्ना आपूर्ति नीति के अनुसार, राज्य के गन्ना किसानों को गन्ना पर्ची जारी करने और गन्ना वितरण के लिए विशेष निर्देश दिए गए हैं। इस नीति में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
- सट्टा की अधिकतम सीमा: सीमांत किसानों (1 हेक्टेयर तक) के लिए प्रति किसान गन्ने की सट्टे की अधिकतम राशि 850 घन मीटर है। छोटे किसानों (2 हेक्टेयर तक) के लिए इसे 1,700 से बढ़ाकर 1,800 क्विंटल और सामान्य किसानों (5 हेक्टेयर तक) के लिए इसे 4,250 से बढ़ाकर 4,500 क्विंटल कर दिया गया है।
- छोटे किसानों को राहत: छोटे किसान अब 72 क्विंटल गन्ना रखने पर भी इस योग्यता को प्राप्त कर सकते हैं, जो कि 60 क्विंटल की पिछली सीमा से अधिक है। इससे सट्टा लगाने वाले 45 दिन की गन्ना आपूर्ति की क्षमता हासिल कर सकेंगे।
- विशेष प्रावधान: इस वर्ष की सट्टा आपूर्ति में निम्नलिखित शामिल होंगे:
- सैनिकों, अर्धसैनिक बलों, पूर्व सैनिकों और मुक्ति सेनानियों और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को गन्ने का प्रावधान।
- भूमि अधिग्रहण और बिक्री की स्थितियों में मूल कोटा का हस्तांतरण।
- ड्रिप तकनीक से सिंचाई करने वाले किसानों को सट्टा आपूर्ति में वरीयता।
- बेहतरीन गन्ना किसानों को मुफ्त आवेदन प्रदान करने की क्षमता।
नीति के लाभ
नई गन्ना सट्टा नीति के निम्नलिखित लाभ हैं:
- कृषकों की आर्थिक स्थिति में सुधार: सट्टा की अधिकतम सीमा बढ़ाने से किसानों को अधिक गन्ना उत्पादन का लाभ मिलेगा।
- प्रबंधन की पारदर्शिता: नई नीति से सट्टा प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और गन्ना माफिया की अनियमितताओं पर रोक लगेगी।
- छोटे किसानों को विशेष लाभ: छोटे किसानों के लिए सट्टा की सीमा बढ़ाने से उन्हें बेहतर लाभ मिलेगा।
आपूर्ति की योजना और प्रक्रिया
पेराई सत्र 2023-2024 के लिए अधिकतम औसत गन्ना आपूर्ति को मूल कोटा मानने के निर्देश दिए गए हैं ताकि आपूर्ति करने वाले किसानों को अधिक से अधिक गन्ना प्राप्त हो सके। यह पिछले दो, तीन और पांच वर्षों की औसत गन्ना आपूर्ति पर आधारित है।
गन्ना आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी के अनुसार, गन्ना आपूर्ति योजना के तहत सीमांत, छोटे और सामान्य किसानों के लिए सट्टा की अधिकतम सीमा क्रमशः 1350 क्विंटल से बढ़ाकर 1400 क्विंटल, 2700 क्विंटल से 2800 क्विंटल और उत्पादन में वृद्धि की स्थिति में 6,750 क्विंटल से 7000 क्विंटल कर दी गई है।
छोटे किसानों को राहत
छोटे किसानों को विशेष राहत देते हुए, अब 72 क्विंटल गन्ना रखने पर भी वे इस योग्यता को प्राप्त कर सकते हैं, जो कि 60 क्विंटल की पिछली सीमा से अधिक है। इससे सट्टा लगाने वाले 45 दिन की गन्ना आपूर्ति की क्षमता हासिल कर सकेंगे।
विशेष प्रावधान
इस वर्ष की सट्टा आपूर्ति में निम्नलिखित शामिल होंगे:
- सैनिकों, अर्धसैनिक बलों, पूर्व सैनिकों और मुक्ति सेनानियों और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को गन्ने का प्रावधान।
- भूमि अधिग्रहण और बिक्री की स्थितियों में मूल कोटा का हस्तांतरण।
- ड्रिप तकनीक से सिंचाई करने वाले किसानों को सट्टा आपूर्ति में वरीयता।
- बेहतरीन गन्ना किसानों को मुफ्त आवेदन प्रदान करने की क्षमता।
निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश में गन्ना सट्टा नियमन के तहत लागू किए गए नवीनतम संशोधनों से छोटे और सीमांत किसानों को विशेष लाभ मिलने की उम्मीद है। नई नीति में सट्टा की अधिकतम सीमा बढ़ाने, भूमि अधिग्रहण और बिक्री स्थितियों में मूल कोटा के हस्तांतरण, और ड्रिप तकनीक से सिंचाई करने वाले किसानों को वरीयता देने जैसे प्रावधान शामिल हैं। इन बदलावों से गन्ना उत्पादन की क्षमता में सुधार होगा और किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। इसके अलावा, प्रबंधन की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए यह नीति महत्वपूर्ण है। छोटे किसानों के लिए विशेष राहत उपायों से वे अधिक गन्ना उत्पादन का लाभ उठा सकेंगे।
पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न:1 गन्ना सट्टा नीति का उद्देश्य क्या है?
उत्तर 1 नीति का उद्देश्य चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति को विनियमित करना है, यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उचित मूल्य और समय पर भुगतान मिले, जबकि मिलों को गन्ने की निरंतर आपूर्ति बनी रहे।
प्रश्न:2 इस नीति से किसे लाभ होगा?
उत्तर 2 नीति मुख्य रूप से गन्ना किसानों को उनके उत्पाद के लिए गारंटीकृत मूल्य प्रदान करके और यह सुनिश्चित करके लाभान्वित करती है कि उनका गन्ना चीनी मिलों द्वारा खरीदा जाए।
प्रश्न:3 इस नीति के तहत गन्ने की कीमतें कैसे निर्धारित की जाती हैं?
उत्तर 3 गन्ने की कीमतें जिले में गन्ने के औसत उत्पादन और चीनी मिलों को औसत आपूर्ति के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। किसानों को उनके जिले में औसत उत्पादन का 65% मूल्य सुनिश्चित किया जाता है।